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हिंदी का पहला आंचलिक उपन्यास माना जाता है?

हेल्लों दोस्तों, आज के इस ब्लॉग पोस्ट के माध्यम से हम सभी जानेंगे कि हिंदी का पहला आंचलिक उपन्यास माना जाता है? क्यों माना जाता हैं दोस्तों इसके बारे में विशेष रूप से चर्चा करेंगे तो आइए जानते हैं!

फ़णीश्वरनाथ रेणु का उपन्यास ‘मैला आंचल‘ (1954) हिन्दी का पहला और श्रेष्ठ आंचलिक उपन्यास माना जाता है. यह उपन्यास, आंचलिक उपन्यासों की शुरुआत माना जाता है. ‘मैला आंचल’ को ‘गोदान’ के बाद हिन्दी उपन्यास धारा की सबसे बड़ी क्रांतिकारी घटना माना जाता है. इसकी कथावस्तु में मौजूद मौलिकता ने हिन्दी साहित्य में एक नई आंचलिक उपन्यासधारा की शुरुआत की. 

‘मैला आंचल’ के किरदार मेरीगंज में रहते हैं और पूरी तरह खेती पर आश्रित हैं. इस उपन्यास में ग्रामीण किरदारों की मदद से किसानों की समस्याओं को उजागर किया गया है. जैसे कि अपर्याप्त संसाधन, कम फ़सल की पैदावार और साहूकारों द्वारा किया जाने वाला शोषण. ‘मैला आंचल’, अंचल विशेष के समाज का समग्र चित्र प्रस्तुत करता है. इस दृष्टि से इसे सामाजिक उपन्यास भी कहा जा सकता है. 

‘मैला आंचल’ के अलावा, 1926 में प्रकाशित शिवपूजन सहाय का उपन्यास ‘देहाती दुनिया’ भी हिन्दी का पहला आंचलिक उपन्यास माना जाता है. यह स्मरण-शिल्प में लिखा गया हिन्दी का पहला उपन्यास भी है. इसमें ग्रामीण जीवन का चित्रण ग्रामीण जनता की भाषा में किया गया है. 

हिन्दी के कुछ और आंचलिक उपन्यास ये हैं:

  • नागार्जुन का ‘दुःखमोचन’, ‘वरुण के बेटे’, ‘नई पौध’, ‘बाबा बटेसरनाथ’
  • उदयशंकर भट्ट का ‘सागर लहरें और मनुय’
  • राही मासूम रज़ा का ‘आधा गाँव’
  • रांगेय राघव का ‘कब तक पुकारूँ’
  • रामदरश मिश्र का ‘पानी के प्राचीर’
  • देवेन्द्र सत्यार्थी का ‘ब्रह्मपुत्र’ और ‘दूध छाछ’
  • राजेन्द्र अवस्थी का ‘जंगल के फूल’ 

आंचलिक उपन्यास से आप क्या समझते हैं?

आंचलिक उपन्यास, उन उपन्यासों को कहते हैं जिनमें किसी विशेष जनपद अंचल (क्षेत्र) के जन-जीवन का समग्र चित्रण होता है. इसमें भाषा, वेशभूषा, उत्पादन के साधन, प्रकार विनिमय जैसे पहलुओं को शामिल किया जाता है. आंचलिक उपन्यास में किसी अंचल विशेष अथवा किसी अपरिचित समाज आदि के जनजीवन, वहाँ के रहन-सहन, रीति-रिवाज, लोकव्यवहार, आचार-विचार आदि का पूरी सहृदयता के साथ चित्रण किया जाता है. 

आंचलिक उपन्यास के जनक कौन है?

फणीश्वरनाथ रेणु (1921-1977) को हिन्दी में आंचलिक उपन्यास का जनक माना जाता है. रेणु ने बिहार के मिथिला अंचल को आधार बनाकर इस अंचल के जन-सामान्य के सुख-दुख, रहन-सहन, संस्कृति, संघर्ष और लोकजीवन को अत्यंत कुशलता व कलात्मकता से इस उपन्यास में प्रस्तुत किया है. ‘मैला आँचल’ (1954) उपन्यास से आंचलिक उपन्यासों की शुरुआत मानी जाती है. 

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