HomeEducationalरामवृक्ष बेनीपुरी: गेहूं और गुलाब कौन सी विधा है?

रामवृक्ष बेनीपुरी: गेहूं और गुलाब कौन सी विधा है?

हेल्लो दोस्तों, आज के इस ब्लॉग में हम जानेंगे कि रामवृक्ष बेनीपुरी के द्वारा लिखित gehun aur gulab कौन सी विधा है? साथ ही हम इसके सारांश और लेखक के बारे में भी विस्तार से चर्चा करेंगे. तो देर किस बात की आइए जानते है कि गेहूं और गुलाब कौन सी विधा है?

gehun aur gulab kaun si vidha hai

gehun aur gulab kaun si vidha hai

रामवृक्ष बेनीपुरी ने अपनी रचना में व्यक्त किया कि ‘गेहूं और गुलाब’ एक उत्कृष्ट निबंध है। निबंध के भीतर, लेखक गेहूं को भौतिक, आर्थिक और राजनीतिक उन्नति के प्रतिनिधित्व के रूप में देखता है, जबकि गुलाब को मानसिक या सांस्कृतिक प्रगति के प्रतीक के रूप में देखा जाता है।

बेनीपुरी के अनुसार मानव जीवन की पूर्णता के लिए इन दोनों तत्वों का सामंजस्यपूर्ण मिश्रण आवश्यक है। “गेहूं और गुलाब” की संरचना की विशेषता इसकी स्केच जैसी रचना है।

गेहूं और गुलाब निबंध का सारांश

इस निबंध के दायरे में, लेखक भौतिक, आर्थिक और राजनीतिक प्रगति का प्रतिनिधित्व करने वाले गेहूं और मानसिक और सांस्कृतिक उन्नति के प्रतीक गुलाब के प्रतीकात्मक महत्व की पड़ताल करता है।

लेखक का दावा है कि मानव जीवन में सच्ची पूर्णता केवल इन दो प्रतीकों के नाजुक संतुलन के माध्यम से ही प्राप्त की जा सकती है।

निबंध गेहूं और गुलाब की ऐतिहासिक स्थिति को भी दर्शाता है, यह देखते हुए कि भूख मानवता की शुरुआत से ही साथ रही है।

Gehun aur gulab ke lekhak kaun hai

रामवृक्ष बेनीपुरी प्रतीकात्मकता से भरपूर निबंध ‘गेहूं और गुलाब’ के लेखक हैं। इस अंश में, लेखक गेहूं को भौतिक, आर्थिक और राजनीतिक प्रगति का प्रतीक बताता है, जबकि गुलाब मानसिक और सांस्कृतिक उन्नति का प्रतीक है।

एक भारतीय लेखक के रूप में, रामवृक्ष बेनीपुरी ने कहानियों, कविताओं, उपन्यासों, रेखाचित्रों, यात्रा वृतांतों, संस्मरणों और निबंधों सहित विभिन्न साहित्यिक विधाओं में योगदान दिया है।

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रामवृक्ष बेनीपुरी का जन्म किस राज्य में हुआ था

23 दिसंबर, 1899 को बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के बेनीपुर गांव में जन्मे रामवृक्ष बेनीपुरी सिर्फ एक हिंदी लेखक नहीं थे। उनकी बहुमुखी पहचान में स्वतंत्रता सेनानी, समाजवादी नेता और संपादक की भूमिकाएँ शामिल थीं।

भूमिहार परिवार से आने वाले बेनीपुरी को बचपन में अपने माता-पिता को खोने के कारण शुरुआती कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, उनका पालन-पोषण उनकी चाची ने किया।

अपने पैतृक गांव को श्रद्धांजलि देने के लिए उन्होंने ‘बेनीपुरी’ नाम अपनाया। उनके उल्लेखनीय कार्यों में 1946 में प्रकाशित ‘माटी की मूरतें’ नामक रेखाचित्रों का एक संग्रह है, जिसमें 12 व्यावहारिक रेखाचित्र शामिल हैं।

बेनीपुरी का साहित्यिक योगदान ‘पतितो के देश में’ और ‘रज़िया’ जैसे महत्वपूर्ण रेखाचित्रों तक फैला हुआ है।

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